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हिंदी दिन का महत्व
अहेवाल लेखन
आर. पी. अनाडा शिक्षण महाविद्यालय
बोरसड, आनंद
दिनांक : १४/ ०९/२०२३
दिनांक ___ सितंबर 2023 को ______वार को हमारे कॉलेज आर. पी. अनाडा शिक्षण महाविद्यालय बोरसड, आनंद मैं हिंदी दिन के महत्व के विषय पर अध्यापक श्रीमनीष सिसोदिया साहब का एक वीडियो दिखाया गया था जिस पर हमे हमारे कॉलेज के अध्यापक डॉ. रांतीबेन बापोदरा के कहने पर एक पतिवर्धन लेख तैयार किया है।
हमे जो वीडियो दिखाया गया था उसमें मनीष सिसोदिया साहबने “हिंदी दिन का महत्व” विषय पर अपने विचार अभिव्यक्त किए थे। वीडियो की शुरुआत में नमस्कार से सबका अभिवादन किया तो कोई प्रतिसार नहीं मिला तो उसने कहा मैंने हिंदी में कहा नमस्कार तो इस बार ज्यादा प्रतिसार मिला तो उसने कहा कि अंग्रेजी मे Good morning, good night कहो तो तुरंत प्रतिसार मिलता है लेकिन हिंदी में नहीं मिलता यह बात भी सही थी। हम लोग इस बात से वाकेफ हैं। उसने सभी सदस्यों को अभिवादन करके सभी हिंदी प्रेमियों को शुभकामनाएं दी। उसके बाद वह अपने विचार पर अपने उच्च विचार रखना शुरू किए थे वह खुद को एक जन प्रतिनिधि के दौर पर कुछ सामान्य बातें रखना चाहते थे और वह पहले समा मांगते हैं की हिंदी के लिए जो बातें कहूं उससे कोई अन्य भाषाकी मानहानि हुआ ऐसा लगे तो उसे खरीफ कर दीजिए।
मनीष सिसोदिया अपने विचार रखते हुए कहते हैं कि वह एक दिन हिंदी के साथियों से बात कर रहे थे। तब उन्होंने दोस्तों को पूछा हिंदी क्यों पढ़ाते है? हिंदी आपके लिए क्या है? हिंदी एक भाषा है या एक विषय है? यह बात मनीष सिसोदियाने जानने के लिए, प्रश्नों के जवाब के लिए कई पाठशालाएं, हिंदी के अध्यापकों से मिले। मनीष सिसोदिया साहबने आगे बताया कि हिंदी विभाग में जो कार्यरत है उनके पास उसका जवाब होना अति आवश्यक है। कि हिंदी आप छात्रों को क्यों पढ़ाते हैं?
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मनीष सिसोदिया साहबने उदाहरण के तहद बताया था कि हम जब विज्ञान पढ़ाते हैं तो हमको पता है कि बच्चे विज्ञान पद के या अच्छी तरह से पड़ गए तो आगे वैज्ञानिक इंजीनियरिंग बन सकेंगे। हम अगर गणित पढ़ाते ही तो हमें पता है कि आगे जाकर छात्रों अकाउंट, चार्ट अकाउंटर बन जाएंगे। लेकिन जब हम हिंदी पढ़ाते हैं तो क्यों पढ़ाते हैं उसका भी उत्तर मिलना आवश्यक है। हम हिंदी छात्रों को इसलिए पढ़ाते हैं कि वह आगे जाकर अच्छे आलोचक बन सके, अच्छे लेखक बन सके, अच्छे कवि बन सके, अच्छे अनुवादक (ट्रांसलेटर) बन सके l
आकर उदाहरण देते हुए कहते हैं कि सातवीं कक्षा में भूगोल का पाठ है उसमें पृथ्वी के आंतरिक भाग को बताते हुए कहते हैं कि “एक प्याज की तरह पृथ्वी भी एक के ऊपर एक संकेंद्रण परतों से बनी है।” अभी यह संकेंद्रण जैसे शब्द पकड़नेमें बच्चोंको कितनी मुश्किलें होगी तभी भूगोल का अध्यापक हिंदी में उनका यह समझ पाएगा। उसमें “सबसे ऊपरी पार्क को प्रॉपर्टी कहते हैं संस्कृत में 35 किलोमीटर दूर है।” ऐसे कहीं शब्द है जो आज हिंदी के छात्रों एवं अध्यापक के अलावा कोई नहीं जानता उनका अर्थ क्या है।
मनीष सिसोदिया आगे कहते हैं कि अगर ठान लोगे तो सिर्फ देश को नहीं पूरे दुनिया को बता सकोगे की हिंदी क्यों पड़ते हैं। आगे एक और उदाहरण देते हैं कि जो बच्चा बहुत बड़ा आदमी इंस्पेक्टर बन जाएगा तो हम प्रेमचंद का “नमक का दरोगा” पढ़कर ईमानदार वाला इंस्पेक्टर बनाना। हिसाब किताब पढ़ने का लक्ष्य तई था तभी इंस्पेक्टर, कलेक्टर मैनेजर बना दिया जबकि प्रेमचंद पढ़ने का लक्ष्य तई नहीं था। तो वह उसका सही इस्तेमाल करने की जगह गलत दिशा में बैठ गया। यह इस उदाहरण के आधार पर मनीष सिसोदिया कहने चाहते थे की हिंदी वह दिशा तय करेगी उसको कैसा बनाना l
इतिहासमें मुगलो, राजपूतों के बारे में, उनके युद्धों के बारे में पढ़ते हैं तब मुगलों के वंशज यही तो हमारा धर्म है युद्ध कर के छीन लेना। राजपूत वह तो उनका धर्म है मारना और मरना। तभी हम कबीर भी पढ़ रहे थे लेकिन तब तय नहीं था कि कबीर पढ़ने का लक्ष्य क्या था। कबीर पड़ गए और कबीर पढ़ रहे हैं। लेकिन एक भी आदमी के जीवन में कबीर नहीं उतर पाए क्योंकि तब लक्ष्य तई नहीं था।
मनीष सिसोदिया आगे बताते हैं कि हम इस सिविल इंजीनियर को कहते हैं कि पहाड़ काटो और रास्ता बनाओ तो साथ-साथ सुमित्रानंदन पंत को भी पढ़ते हैं कि इस प्रकृति को पहचानो ताकि उसको नाशज– विनाश ना कर दो। पहले वाले का लक्ष्य तई था इसलिए रास्ते बना दिए पर दूसरे वाले का लक्ष्य तई नहीं था इसलिए पहाड़ गिरा दीए, ब्लास्ट कर दिए तो उसके अंदर का जो लॉच था( carve ) आना था अपने काम के बारे में अपने AK147 में अपने बारूद की फैक्ट्री में वह निकल गया वह नहीं आया। वह साहित्य से आना था, वह हिंदी से आना था, वह कहानियों से आना था, वह उपन्यास से आना था, वह आलोचनाओं से आना था, वहां लेख और समीक्षा को पढ़कर आना था वह नहीं आया। क्यों कि वहां हमने लक्ष्य तई नहीं किया तो उसे लक्ष्य को निर्धारित करना जरूरी है। ऐसे मनीष सिसोदिया साहब कहते हैं। तभी हमारा हिंदी दिवस मनाना सार्थक होगा। तभी हमारा यह उपक्रम सार्थक होगा कि हमारे समाज में हिंदी समाजमे में हिंदी दिवस मनाने की जरूरत ना पड़े हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए।